Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


पवित्र ईर्ष्या

[7 ]
विनोद को विमला का अखिलेश के प्रति इतना प्रेम प्रदर्शित करना, इस प्रकार अनुरोध से बुलाना अच्छा न लगा। वे बोले तो कुछ नहीं, पर उनकी प्रसन्‍नता उदासी में परिणत हो गई। उनके कुछ न करने पर भी उनकी भाव-भंगी और व्यवहार से विमला समझ गई कि विनोद को कुछ बुरा लगा है। विनोद ने विमला के बहुत आग्रह करने पर अपने हृदय के सब भाव उससे साफ-साफ कह दिए । उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें विमला का अखिलेश के प्रति इतना अधिक स्नेह-भाव संदेहात्मक जान पड़ता है। विमला ने अपने प्रयत्न भर उनके संदेह को दूर करने की कोशिश की । और अंत में उन्हें यहाँ तक आश्वासन दिया कि यदि विनोद न चाहेंगे तो विमला अखिलेश से कभी मिलेगी भी नहीं।

किंतु इतने वर्षों का संबंध कुछ घंटों में ही तोड़ देना बहुत कठिन है। दूसरे दिन अखिलेश के आते ही विमला यह भूल गई कि रात के समय क्या-क्या बातें हुई थीं। वह फिर अखिलेश से उसी प्रकार प्रेम से बातें करने लगी। किंतु कुछ ही क्षण बाद विनोद की मुखाकृति ने उसे रात की बातों की याद दिला दी। वह कुछ गंभीर हो गई, उसकी आँखें करुणा और विवशता से छलक आईं! विमला की आँखों में करुणा का आविर्भाव होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि वह हृदय से दुखी थी। उस पर जो संदेह था वह निर्मूल था। वह जिस मर्मातक पीड़ा का अनुभव कर रही थी, उसे वही समझ सकता है, जिसका पवित्र संबंध कभी संदेह की दृष्टि से देखा गया हो।

विमला प्रयत्न करने पर भी अपने आँखों की करुणा न छिपा सकी। उसने एक-दो बार अखिलेश की ओर देखा और थोड़ी बातचीत भी की, किंतु अपनी विवशता या कातरता प्रकट करने के लिए नहीं; किंतु यह प्रकट करने के लिए कि उसके इस व्यवहार और उदासीनता से अखिलेश यह न समझ बैठे कि उनका किसी प्रकार का अपमान हुआ है। विमला की दृष्टि और व्यवहार से विनोद का संदेह और बढ़ गया। वे विमला की प्रत्येक भावभंगी को बड़े ध्यान से देख रहे थे, और जितना ही वे उस पर विचार करते, उनका संदेह गहरा होता जाता। यह अखिलेश ने भी देखा कि आज विमला और विनोद दोनों ही कुछ अस्वस्थ और अनमने हैं।

किंतु उनकी अस्वस्थता के कारण अखिलेश ही हो सकते हैं, यह वह सोच भी न सके क्योंकि विनोद और विमला दोनों के प्रति उनका पवित्र और प्रगाढ़ प्रेम था। उस स्नेह भाव को ध्यान में लाते हुए उदासी का कारण अपने आपको समझ लेना अखिलेश के लिए आसान न था। किंतु फिर भी विनोद और विमला दोनों के ही व्यवहार ने आज उन्हें आश्चर्य में डाल दिया। वह न जाने किस विचारधारा में डूबे हुए अपने घर गए। जाते समय कुछ हिचक और कुछ संकोच के साथ विमला ने उनसे कहा, 'कभी-कभी आया करना अखिल भैया।'

विनोद उठकर अखिल के साथ हो लिए। बातचीत करते-करते विनोद अखिल के घर तक पहुँच गए। उन्होंने अखिलेश के साथ ही भोजन भी किया। दोनों का प्रेम सच्चा था। उनका स्नेह इतना निष्कपट था, कि विनोद अपने इस संदेह को भी अखिल से न छिपा सके, उन्होंने अखिल से यहाँ तक कह दिया, भाई अखिल, यदि तुम मुझे सुखी देखना चाहते हो तो विमला से जरा कम मिलो। मैं यह जानते हुए कि तुम मेरे हितैषी हो, मेरे बंधु हो, विमला चाहे एक बार मुझसे कोई बात छिपा भी जाए पर तुम न छिपा सकोगे, नहीं चाहता कि तुम विमला से अधिक मेल-जोल रखो। अखिलेश, मुझे ऐसा जान पड़ने लगता है कि तुम्हारे स्नेह के सामने विमला के हृदय में मेरे स्नेह का दूसरा स्थान हो जाता है। तुम्हारा मूल्य उसकी आँखों में मुझसे कहीं ज्यादा हो जाता है।

'यह बात तो सच है, क्योंकि मैं उसका भाई हूँ, अखिलेश ने किचित्‌ मुस्कराकर कहा। फिर वह गंभीर होकर बोले, “विनोद! तुम जैसा चाहो। मैं विमला से मिलने के लिए बहुत उत्सुक भी नहीं हूँ, और यदि तुम चाहो तो मैं यह स्थान ही बदल दूँ, कहीं और चला जाऊँ, अभी लौटे दिन ही कितने हुए हैं? सर्विस दूसरी जगह भी तो कर सकता हूँ।'

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